इस प्रान्त का नाम कुर्मांचल या कुमाऊं होने के विषय में यह किम्बदंति कुमाऊं के लोगों में प्रचलित है कि जब विष्णु भगवान का दूसरा अवतार कुर्म अथवा कछुए का हुआ, तो यह अवतार कहा जाता है कि चम्पावती नदी के पूर्व कुर्म-पर्वत में 3 वर्ष तक खड़ा रहा l उस कुर्म अवतार के चरणों का चिन्ह पत्थर में हो गया, और वह अब तक विदमान होना कहा जाता है l तब से इस पर्वत का नाम कुर्माचल हो गया l कुर्मांचल का प्राकृत रूप बिगडते बिगडते कुमू बन गया और यही शब्द भाषा में कुमाऊँ में परिवर्तित हो गया l
पहले यह नाम चम्पावत और उसके आसपास के गावों को दिया गया l तत्पश्चात या तमाम काली कुमाऊंहो परगने का सूचक हो गया, और काली नदी के किनारे के प्रान्त – चालसी, गुमदेश, रेगड़, गंगोल, खिलफती और उन्हीं से मिली हुई ध्यानिरों आदि पट्टियां भी काली कुमाऊं नाम से प्रसिद्ध हुई l ज्यों-ज्यों चंदों का राज्य-विस्तार बढ़ा, तो कूर्मांचल उर्फ़ कुमाऊं उस सारे प्रदेश का नाम हो गया, जो इस समय ज़िला अल्मोड़ा व नैनीताल में शामिल है l
सब लोगों को यही बात प्रचलित है कि कुमाऊँ का नाम कुर्मपर्वत के कारण पड़ा, पर डाक्टर जोधसिंह नेगीजी ‘हिमालय-भ्रमण’ में लिखते हैं- “ कुमाऊं के लोग खेती व धन कमाने में कमाने में सिध्दस्त है l वे बड़े हैं, इससे देश का नाम कुमाऊं हुआ l“